हे वीणा वादिनी सरस्वती
हंस वाहिनी सरस्वती
विद्या दायिनी सरस्वती
नारायणी नमोस्तुते ॥
हे वीणा वादिनी सरस्वती
हंस वाहिनी सरस्वती
विद्या दायिनी सरस्वती
नारायणी नमोस्तुते ॥
तू राह दिखाना मात मेरी
साथ निभाना मात मेरी
अँधियारा है अंतर मन
ज्योत जलना मात मेरी ..x2
हे वीणा वादिनी सरस्वती
हंस वाहिनी सरस्वती
विद्या दायिनी सरस्वती
नारायणी नमोस्तुते ॥ ..x2
मन में करुणा भर देती
निष्पाप ह्रदय तू कर देती
भक्ति से तुझे पूजे जो
सुबह आस तू मन में भर देती ..x2
हे वीणा वादिनी सरस्वती
हंस वाहिनी सरस्वती
विद्या दायिनी सरस्वती
नारायणी नमोस्तुते ॥
हे वीणा वादिनी सरस्वती
हंस वाहिनी सरस्वती
विद्या दायिनी सरस्वती
नारायणी नमोस्तुते ॥
हे वीणा वादिनी सरस्वती: गीत का हिंदी अर्थ और महत्व
गीत की पंक्तियाँ
हे वीणा वादिनी सरस्वती हंस वाहिनी सरस्वती विद्या दायिनी सरस्वती नारायणी नमोस्तुते ॥
यह गीत माँ सरस्वती की स्तुति में गाया गया है। माँ सरस्वती को ज्ञान और विद्या की देवी माना जाता है। यह गीत उनके प्रति श्रद्धा और आस्था को प्रकट करता है, जहाँ वे वीणा बजाने वाली, हंस पर सवार, और विद्या देने वाली देवी के रूप में वर्णित हैं।
पंक्तियों का अर्थ
हे वीणा वादिनी सरस्वती
इस पंक्ति में माँ सरस्वती को वीणा बजाने वाली देवी के रूप में संबोधित किया गया है। वीणा संगीत और ज्ञान का प्रतीक है, जो माँ सरस्वती की विद्या और कला देने की शक्ति को दर्शाता है।
हंस वाहिनी सरस्वती
माँ सरस्वती का वाहन हंस है, जो विवेक और शुद्धता का प्रतीक माना जाता है। हंस से यह भाव उत्पन्न होता है कि ज्ञान और विवेक के साथ जीवन में शुद्धता और सत्यता का पालन किया जाना चाहिए।
विद्या दायिनी सरस्वती
माँ सरस्वती को ‘विद्या दायिनी’ यानी ज्ञान प्रदान करने वाली कहा गया है। वे संसार में विद्या, ज्ञान और समझ का संचार करती हैं, जो व्यक्ति को अज्ञानता से मुक्ति दिलाता है।
नारायणी नमोस्तुते
‘नारायणी’ का अर्थ है वह जो भगवान नारायण से संबंधित है। इस पंक्ति में माँ सरस्वती को प्रणाम किया गया है, जो उन्हें भगवान विष्णु के शक्ति के रूप में मान्यता देती है।
प्रार्थना की भावना
तू राह दिखाना मात मेरी, साथ निभाना मात मेरी
यहाँ भक्त माँ सरस्वती से प्रार्थना करता है कि वे जीवन के कठिन रास्तों में उन्हें मार्गदर्शन दें और हमेशा उनका साथ निभाएं। यह जीवन की कठिनाइयों में माँ से मार्गदर्शन और सहायता की विनती है।
अँधियारा है अंतर मन, ज्योत जलाना मात मेरी
इस पंक्ति में भक्त अपने भीतर के अज्ञान और अंधकार को दूर करने की माँ से प्रार्थना करता है। माँ सरस्वती से आह्वान किया जाता है कि वे ज्ञान की ज्योति जलाएं ताकि अज्ञान का अंधकार दूर हो सके।
मन में करुणा भर देती, निष्पाप ह्रदय तू कर देती
यहाँ माँ सरस्वती की करुणा और दयालुता की सराहना की जा रही है। वे भक्त के ह्रदय को पवित्र और निष्पाप कर देती हैं, जिससे भक्ति का भाव प्रकट होता है।
भक्ति से तुझे पूजे जो, सुबह आस तू मन में भर देती
इस पंक्ति में बताया गया है कि जो भी भक्त माँ सरस्वती की सच्चे मन से पूजा करता है, वह उसकी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं। वे उसके जीवन में आशा और नई संभावनाओं का संचार करती हैं।
समापन
हे वीणा वादिनी सरस्वती हंस वाहिनी सरस्वती विद्या दायिनी सरस्वती नारायणी नमोस्तुते ॥
अंत में, यह गीत माँ सरस्वती की महिमा को दोहराते हुए समाप्त होता है, जहाँ उन्हें फिर से वीणा वादिनी, हंस वाहिनी और विद्या दायिनी के रूप में याद किया गया है। यह गीत भक्त के जीवन में ज्ञान और समझ के महत्व को दर्शाता है और माँ से अज्ञान के अंधकार को दूर करने की प्रार्थना करता है।